Description
उद्देश्य प्रस्तुत पुस्तक में निरन्तर परिवर्तित होते हुए पदार्थ का अवलोकन किया गया है। पदार्थिय दहन क्रिया के फलस्वरूप ऊर्जा रूपान्तरण चक्र चलता है जिसमें नाना प्रकार के जैव-अजैव कारक उत्पन्न होकर अणुवीय सघन आबन्ध तोड़ उसे विरलता की और परिवर्तित करने का माध्यम बनते हैं। निर्जीव अणु ऊर्जा दहन क्रम में जैव इकाइयों का रूप धारण कर विभिन्न रचनाएँ बनाते हैं जो स्वतंत्र रूप मे दहन क्रियायाओं का हिस्सा बनती हैं। शेष प्राणी अधिकतर सांसों द्वारा ही ऊर्जा नष्ट करते हैं तथापि मानव सांसों के अतिरिक्त भी अपने क्रिया कलापों द्वारा व्यापक स्तर पर ऊर्जा नष्ट करता है। उसके सभी अविष्कार ऊर्जा दहन पर आधारित हैं। मानव द्वारा पदार्थ को अनेक रूपो में ढाल कर बनाई गई आकृतियों का प्राकृतिक रूप से कोई मुल्य नही है बल्कि उनसे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। वातावरण जहरीला कर उस